झारखण्ड का नामकरण और पुरातात्विक स्रोत
नामकरण:-
- झारखण्ड का शाब्दिक अर्थ वन प्रदेश है|
- झारखण्ड क्षेत्र का सर्वप्रथम उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है|
- ऐतरेय ब्राह्मण में झारखण्ड क्षेत्र का उल्लेख पुण्ड् नाम से मिलता है।
- वायु पुराण में झारखण्ड को मुरण्ड नाम से संबोधित किया गया है।
- विष्णु पुराण में झारखण्ड को मुण्ड कहा गया है।
- महाभारत के दिग्विजय पर्व में झारखण्ड क्षेत्र की चर्चा पशु भूमि एवं पुंडरीक देश के नाम से मिलती है।
- टॉलमी द्वारा झारखण्ड को मुंडल शब्द से संबोधित किया गया है।
- फाह्यान द्वारा झारखण्ड की चर्चा कुक्कुट-लार्डनाम से की गयी है|
- ह्वेनसांग ने झारखण्ड के लिए की-लोना-सु-फा-ला-ना शब्द का प्रयोग किया है।
- मलिक मोहम्मद जायसी के पदमावत ग्रंथ में झारखण्ड शब्द का उल्लेख मिलता है।
- झारखण्ड शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख 13वीं शताब्दी में एक ताम्र पत्र में किया गया था।
- मुगल काल में झारखण्ड को खुखरा/कुकरा नाम से जाना जाता था।
- अबुल फजल कृत अकबरनामा में छोटानागपुर क्षेत्र को झारखण्ड कहा गया है।
- जहाँगीर ने अपनी आत्म कथा तुज़ुक-ए-जहाँगीर में झारखण्ड क्षेत्र के लिए खोखरा शब्द का प्रयोग किया है।
- आइने अकबरी में झारखण्ड को कोकरा तथा खंकारह कहा गया है|
- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में झारखण्ड को मुरूड नाम से संबोधित किया गया है|
- चीनी यात्री ह्वेनसांग ने राजमहल क्षेत्र को कि-चिंग काई-लॉ नाम से संबोधित किया है।
- संथाल परगना को प्राचीन काल में नरीखंड तथा बाद में कांकजोल के नाम से संबोधित किया गया है।
- भागवत पुराण में झारखण्ड को किक्कट प्रवेश कहा गया है।
- पूर्व मध्यकालीन साहित्य में झारखण्ड को कलिन्द देश कहा गया |
- कबीर दास के दोहे में झारखण्ड शब्द का उल्लेख मिलता है।
- शाहवाज खाँ और अब्दुल हई ने माथिर-उल-उमरा में झारखण्ड क्षेत्र के लिए कोकरह शब्द का प्रयोग किया है।
- बहारिस्तान-ए-गैबो के लेखक मिर्जा नाथन ने झारखण्ड क्षेत्र को कुकरा देश नाम से संबोधित किया है।
- राँची जिला का प्राचीन नाम कोकरह, चुटिया नागपुर तथा विलकिनसनगंज/ किसुनपुर था|
- चुटिया नागपुर से छोटानागपुर शब्द अपभ्रंश होकर निकला।
- जे.एच. हेविट ने इस क्षेत्र को चुटिया नागपुर कहा।
पुरातात्विक स्रोत:-
- झारखण्ड में पुरातात्विक उत्खनन से पूर्व मध्य एवं उत्तरी पाषाणकालीन पत्थर के औजार एवं उपकरण मिले हैं।
- झारखण्ड में सबसे पुराने अवशेष पूर्व पुरापाषाण काल के हैं।
- झारखण्ड में आदि मानव के निवास का साक्ष्य मिला है।
- हजारीबाग जिले के इस्को नामक स्थान से आदि मानव द्वारा निर्मित चित्र मिले हैं।
- इस्को में भूल-भुलैया जैसी आकृति भी मिली हैं।
- सीतागढ़ा पहाड़ (हजारीबाग) से छठी शताब्दी में निर्मित एक बौद्ध मठ के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग के प्रतीक चिन्ह सौतागढ़ा से प्राप्त अष्टदल की ही अनुकृति है।
- भवनाथपुर (गढ़वा) में प्रागैतिहासिक काल के दुर्लभ शैल चित्र एवं प्राकृतिक गुफाएँ प्राप्त हुई है।
- भरतीय पुरातत्व में झारखण्ड के राँची, गुमला एवं लोहरदगा जिलों के लिए असुर शब्द का प्रयोग किया गया है।
- झारखण्ड के लुपंगडी नामक स्थल से ‘कब्रगाह’ के प्राचीन अवशेष मिले हैं।
- लोहरदगा जिले से ‘कांसे का प्याला’ प्राप्त हुआ है।
- मुरद नामक स्थान से ताँबे की सिकड़ी और कांसे की अंगूठी मिली है।
- बेनुसागर नामक स्थान से सातवीं शताब्दी की जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई है।
- हजारीबाग के दूधपानी से आठवीं शताब्दी के अभिलेख प्राप्त हुए हैं।
- हजारीबाग के दूधपानी के निकट दुमदुमा से शिवलिंग प्राप्त हुआ है।
- राजधानी राँचो के नामकुम से ताँबे एवं लोहे के औजार और वाण के फलक मिले हैं।
- पाण्डु से चार पाये वाली पत्थर की चौकी मिली है, जो पटना संग्रहालय में रखा हुआ है। .
- पलामू किला (लातेहार) से बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा में एक मूर्ति प्राप्त हुई है।
- इटखोरी (चतरा) से गुप्तकालीन अवशेष मिले हैं।
- कवि गंगाधर (1373-78 ई.) द्वारा रचित प्रस्तर शिला-लेख गोविन्दपुर (धनबाद) से प्राप्त हुए हैं।
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