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झारखण्ड के लोकनृत्य,लोक संगीत व लोक-नाट्य:-
झारखण्ड का लोकनृत्य:-
- झारखण्ड का सबसे मशहूर लोकनृत्य छऊ नृत्य है ।
- छऊ नृत्य झारखण्ड के सरायकेला खरसावां जिले में प्रचलित है|
- सरायकेला के राजकुमार सुधेन्दु नारायण सिंह द्वारा छऊ नृत्य का विदेश में सर्वप्रथम प्रदर्शन 1938 ई. में करवाया गया ।
- छऊ नृत्य शैली का जन्म स्थान सरायकेला है|
- छऊ नृत्य ओजपूर्ण नृत्य शैली है, जिसमें पौराणिक एवं ऐतिहासिक कथाओं के मंचन के लिए पात्र तरह-तरह के मुखौटे धारण करते हैं।
- पइका नृत्य है|
- सैनिक पोशाक पहनकर पइका नृत्य किया जाता है।
- जदुर सामूहिक नृत्य है।
- जदुर नृत्य को नीर सुसंको कहा जाता है।
- करमा पर्व के अवसर का करम नृत्य सामुहिक रूप से किया जाता है।
- जतरा सामुहिक नृत्य है|
- नचनी नृत्य है ।
- नटुआ पुरुष प्रधान नृत्य है|
- मगाह नृत्य हो जनजाति में प्रचलित है।
- अग्नि धार्मिक नृत्य है |
- पंवड़िया नृत्य जन्मोत्सव के अवसर पर किया जाता है।
- नचनी नृत्य एक पेशेवर नृत्य है|
जनजातीय नृत्य एवं विशेषताएँ:-
- छऊ – सरायकेला खरसावा का मुखौटा आधारित ओजपूर्ण नृत्य शैली।
- पइका- सैनिक पोशाक के साथ किया जाने वाला नृत्य।
- जदुर – सामूहिक नृत्य शैली।
- करमा- त्योहारों के अवसर पर किया जाने वाला सामूहिक नृत्य।
- जतरा- सामूहिक नृत्य शैली।
- नटुआ- पुरूष प्रधान नृत्य शैली।
- पंवड़िया-जन्मोत्सव के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य।
- मगाह – हो जनजाति में प्रचलित नृत्या
लोकगीत एवं संगीत:-
- झूमर गीत पर्व-त्योहार के अवसर पर गाया जाता है|
- अंगनई गीत है ।
- डइडधरा नृत्य वर्षा ऋतु में मुख्यतः ‘देवथानों’ में गाया जाता है ।
- दोड, लागड़ें, बहा, साहराय, मातवार, डाहार, गोलवारी, भिनसार, रिंजा, डाण्टा, धुरूमजाक, झिका एवं दासांय लोकगीत का संबंध संथाल जनजाति से है।
- जदुर, गेना ओर जदुर, करमा, जतरा, जरगा तथा जपी मुंडारी भाषा के लोक गीत हैं|
- दोड संथालों के प्रेम और विवाह विषयक गीत है।
- अंड़न्दी हो-मुंडाओं के प्रेम और विवाह विषयक गीत है।
- जपी मुंडाओं के आखेट विषयक लोकगीत है।
- सरहुल/बाहा पर्व से संबंधित जदुर बसंत गीत है ।
- हैरो तथा नोमनामा लोकगीत का संबंध हो से है।
- जनानी झूमर-अंगनई, डोमकच-झूमता, विवाह-झंझाइन महिलाओं द्वारा गये जानेवाले लोकगीत है।
- झूमर गीत झूमर राग में गाया जाता है।
- अंगनई गीत अंगनई राग में गाया जाता है।
- करमा, सोहराय और अन्य जनजातीय त्योहारों में समूह नृत्य और गायन में झूमर राग के विविध प्रकार प्रकट होते हैं ।
- झंझाइन गीत जन्मोत्सव के अवसर पर गया जाता है।
- डोमकच गीत विवाह के अवसर पर गया जाता है।
- जतरा, धरिया, असाढ़ी, करमा, मट्ठा तथा जादुर उराँव जनजाति के लोकगीत है।
लोक संगीत व उनके गाये जाने के अवसर:-
- डोमकच—- विवाह के अवसर पर स्त्रियों द्वारा गाया जाता है
- झूमर—- तीज, करमा, जितिया, सोहराय के अवसर पर गाया जाता है।
- झंझाइन—-जन्म संबंधी संस्कार के अवसर पर स्त्रियों द्वारा गाया जाता है।
- डइड़धरा—-वर्षा ऋतु में देवस्थानों में गाया जाता है।
- प्रातकली—-इसका प्रदर्शन प्रातः काल में किया जाता है।
- अधरतिया—-इसका प्रदर्शन मध्यरात्रि में किया जाता है।
लोक-नाट्य:-
- जट-जटिन लोकनृत्य में वैवाहिक जीवन को प्रदर्शित किया जाता है।
- जट-जटिन तथा भकुली बंगा लोक नाट्य का आयोजन सावन-कार्तिक माह में किया जाता है|
- भकुली बंका लोक नाट्य में जट एवं जटिन के द्वारा नृत्य किया जाता है ।
- किरतनिया लोक नाट्य का संबंध श्रीकृष्ण से है|
- डोमकच लोकनाट्य का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया जाता है|
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