महाराणा प्रताप का साहसी इतिहास
महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के मैदान युद्ध कब और किसके बीच लड़ा?
👉Haldighati ka yuddh Akbar aur Maharana Pratap ke bich 1576 Mein Lada gaya tha
भारतीय इतिहास में अनेकों वीर महापुरुष हुए जिनकी वीरता के किस्से हम बचपन से सुनते आ रहे हैं आज हम बात कर रहे हैं महान शक्ति से संपन्न योद्धा महाराणा प्रताप के बारे में जिन्होंने इतिहास के पन्नों की अपनी वीरगाथा को ऐसे लिखा जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता |
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ में हुआ ,वह बचपन से ही शूरवीर और साहसी थे उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी मातृभूमि की रक्षा और स्वाभिमान के लिए संघर्ष करने में गुजार दी वीरता और आजादी के लिए प्यार तो राणा के खून में समाया था क्योंकि वह राणा सांगा के पोते और उदय सिंह के पुत्र थे महाराणा प्रताप हाइट 7`5“ फुट और उनका कुल वजन 110 kg था ,अपने साथ सुरक्षा कवच जिसका वजन 72 किलो और भाले का वजन 80 किलो था| कवच ,भाला, ढाल और साथ में दो तलवार आदि को मिलाएं तो युद्ध में 200 kg से भी ज्यादा वजन उठाकर लड़ लिया करते थे अगर बात करें महाराणा प्रताप की और उनके सभी शास्त्रों की कुल मिलाकर 300 kg से भी ज्यादा वजन उठाकर उनका घोड़ा चेतक दौड़ लिया करता था |
महाराणा प्रताप युद्ध में इतने कौशल थे कि वह अपने चेतक पर बैठे-बैठे ही सामने वाले दुश्मन को एक ही तलवार से घोड़ा सहित दुश्मन दोनों को एक ही झटके में काट दिया करते थे 28 फरवरी 1572 को होली के दिन महाराणा प्रताप का कुंभलगढ़ के किले में राज अभिषेक हुआ था|
इस बात से नाराज उनका छोटा भाई जोकि उदय सिंह की दूसरी पत्नी का पुत्र था’ जगमाल ‘जोकि अकबर की शरण में चला गया और उधर अकबर ने सोचा जगमाल मेवाड़ को अपने कब्जे में लेने के लिए काम आ सकता है | अकबर ने सिरोही की कुछ जागीर दे दी लेकिन 1583 ईसवी में दत्तानी के युद्ध के दौरान मृत्यु हो गई थी | उस समय तक पूरे भारतवर्ष में अकबर का शासन हो चुका था|
तब महाराणा प्रताप ऐसे राजा थे जो अकबर के सामने खड़े होने का साहस किया था अकबर ने प्रताप के सामने प्रस्ताव रखा था अगर महाराणा प्रताप मेरी सियासत को स्वीकार करते हैं तो आधे हिंदुस्तान की सत्ता महाराणा प्रताप को दे दूंगा लेकिन महाराणा ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया लगातार कई वर्षों तक प्रयास करने के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बंदी नहीं बना सका| फिर कई युद्ध भी हुए |
महाराणा प्रताप का साहसी युद्ध हल्दीघाटी:-
पर सबसे खतरनाक युद्ध 1576 में हल्दीघाटी के मैदान पर लड़ा गया युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना में सिर्फ 20000 सैनिक थे और अकबर की सेना में 85000 सैनिक थे इतनी विशाल सेना देखकर महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और अपनी मातृभूमि के सम्मान के लिए संघर्ष करते रहे ,युद्ध के अंतिम दौर में उनके चेतक घोड़े ने अहम भूमिका निभाई जिसने अपनी जान दांव पर लगाकर 26 फुट गहरा दरिया पार कर आया था और दरिया पार कर दी उनके घोड़े चेतक ने वहीं दम तोड़ दिया था |
महाराणा प्रताप को किसने मारा:-
हल्दीघाटी का युद्ध इतना भयंकर था कि युद्ध के 300 वर्षों के बाद भी वह जमीन के अंदर तलवार पाई गई समय पड़ने पर महाराणा प्रताप जंगलों में रहना पड़ा और कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा था बाद में भामाशाह जैसे भरोसेमंद लोगों की मदद से उन्होंने दोबारा युद्ध लड़ा और प्रदेश के अधिकांश हिस्सों पर अपना राज्य फिर स्थापित कर लिया लेकिन चित्तौड़गढ़ राज्य को नहीं करा सके थे और प्रदेश की अधिकांश हिस्सों पर अपना राज्य पुनः स्थापित कर लिया लेकिन वह चित्तौड़गढ़ राज्य को पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं करा सके थे बाद में 15 जनवरी 1597 को शिकार करते समय वह घायल हो गए और वही अपने प्राण त्याग दिए ऐसा कहा जाता है कि महाराणा प्रताप की मृत्यु की खबर सुनकर अकबर की आंखों में आंसू आ गए थे पर आज एक पराक्रमी देशभक्त और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए मर मिटने वाले महाराणा प्रताप दुनिया में सदा के लिए अमर हो गए और आज भी उनके वीरता के गीत प्रसिद्ध हैं|