Jharkhand Gk in Hindi JSSC
झारखंड जीके का टेस्ट देने के लिए image पर लिंक पर क्लिक app download करें:-झारखण्ड के प्राचीन राजवंश
झारखण्ड के मुंडाराज
- झारखण्ड में राज्य निर्माण की प्रक्रिया सर्वप्रथम मुंडा जनजाति के लोगों ने शुरू की।
- रिता/रिसामुंडा प्रथम जनजातीय मुंडा नेता था, जिसने राज्य निर्माण की प्रक्रिया शुरू की।
- रिता/रिसामुंडा ने सुतिया पाहन को मुंडाओं का शासक चुना।
- रिता/ रिसा मुंडा ने नये राज्य का नाम सुतिया नागखण्ड रखा।
- सुतियाके राज्य 7 गढ़ एवं 21 परगनों में विभक्त था।
झारखण्ड के नागवंशीराजवंश
- नागवंशीराज्य की स्थापना प्रथम शताब्दी में की गई थी।
- नागवंशीराज्य की स्थापना फणिमुकुट राय ने की|
- फणिमुकुटराय प्रथम नागवंशी राजा थे।
- फणिमुकुटराय के राज्य में 66 परगने थे।
- फणिमुकुटराय ने सुतियाम्बे को अपनी राजधानी बनाया ।
- फणिमुकुटराय को नागवंश का आदिपुरूष माना जाता है।
- फणिमुकुटराय पुंडरीक नाग एवं वाराणसी की ब्राह्मण कन्या पार्वती के पुत्र थे।
- फणिमुकुटराय का विवाह पंचेत के गोवंशीय राजपूत घराने में हुआ था।
- फणिमुकुटराय के दीवान पांडे भवराय श्रीवास्तव थे।
- राजाप्रताप राय ने अपनी राजधानी सुतियाम्बे से बदलकर चुटिया कर ली।
- चुटियास्वर्ण रेखा नदी के तट पर बसा था।
- नागवंशीराजा भीम कर्ण ने खुखरा को अपनी राजधानी बनाया।
- नागवंशीराजा भीम कर्ण ने भीम सागर का निर्माण करवाया था।
- नागवंशीराजा भीम कर्ण को सरगुजा के हेहयवंशी रक्सैल राजा के साथ युद्ध करना पड़ा।
- नागवंशीराजा भीम कर्ण बरवा की लड़ाई में विजयी हुआ।
- नागवंशीराजा भीम कर्ण को बरवा की लड़ाई में लूट के रूप में वासुदेव की एक मूर्ति प्राप्त हुई।
- राँचीस्थित जगन्नाथ मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा ऐनी शाह द्वारा कराया गया था।
- 1691 ई. में नागवंशी शासक ऐनी शाह द्वारा जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया गया था।
- नागवंशीराजा ऐनी शाह ने स्वर्णरेखा के समीप सतरंजी में अपनी राजधानी स्थापित की थी।
- नागवंशीशासक दुर्जन शाह ने दोइसा को अपनी राजधानी बनाया।
- नागवंशीशासक दुर्जन शाह ने दोयसा में नवरत्नगढ़ राजप्रसाद का निर्माण कराया था।
- नागवंशीशासक जगन्नाथ शाहदेव ने पालकोट भौरों को अपनी राजधानी बनाया था।
- नागवंशीशासक यदुनाथ शाह ने पालकोट को अपनी राजधानी बनाया।
- नागवंशीशासक प्रताप उदयनाथ शाहदेव की राजधानी रातुगढ़ थी|
- नागवंशीराजाओं की राजधानी का सही क्रम सुतियाम्बे, चुटिया, खुखरा, डोसा, पालकोट एवं रातूगढ़ है।
- शिवदासकरण नामक नागवंशी राजा ने हप्पामुनि मंदिर (घाघरा ) का निर्माण कराया था।
- नागवंशीशासक चिन्तामणि शरणनाथ शाहदेव के शासन–काल में जमींदारी उन्मूलन हुआ।
झारखण्ड के रक्सैलराजवंश
- पलामूमें प्रारंभ में रक्सैल राजवंश का आधिपत्य था।
- रक्सैलवंश के लोग स्वयं को राजपूत कहते थे।
- रक्सैलवंश के लोग चेरो द्वारा अपदस्थ किये गये।
झारखण्ड के चेरोराजवंश
- भागवतराय द्वारा पलामू में चेरो वंश की स्थापना की गई थी।
- मंदिनीराय सर्वाधिक प्रतापी चेरो शासक था। इसके शासन काल को चेरो राजवंश का ‘स्वर्णयुग‘ कहा जाता है।
झारखण्ड के सिंहराजवंश
- काशीनाथसिंह सिंहभूम के सिंह वंश की पहली शाखा के संस्थापक थे।
- दर्पनारायण सिंह सिंहभूम के सिंह वंश की दूसरी शाखा के संस्थापक थे।
- सिंहभूमको पोराहाट के सिंह राजाओं की भूमि कहा गया है।
झारखण्ड के मानराजवंश
- मानभूमके मान राजवंश का राज्य हजारीबाग एवं मानभूम में विस्तृत था।
- गोविंदपुर(धनबाद) में कवि गंगाधर द्वारा रचित प्रस्तर शिलालेख में मानभूम के मान राजवंश का उल्लेख है।
- हजारीबागके दूधपानी नामक स्थान से प्राप्त गुप्त शिलालेख में मानभूम के मान राजवंश का उल्लेख है।
रामगढ़राज्य
- रामगढ़राज्य की स्थापना 1368 ई. में बाघदेव सिंह द्वारा की गयी थी।
- रामगढ़राज्य के राजा हेमन्त सिंह ने अपनी राजधानी उर्दा से हटाकर बादम में स्थापित की।
- रामगढ़राज्य के राजा दलेल सिंह ने अपनी राजधानी बादम से हटाकर रामगढ़ कर दी
- रामगढ़राजा तेज सिंह ने अपने शासन का संचालन इचाक से किया।
- कामाख्यानारायण सिंह रामगढ़ की गद्दी पर 1937 ई. में बैठे।
- रामगढ़के राजा की मूल राजधानी रामगढ़ थी।
- सिसिया–उर्दाबादम, रामगढ़, इचाक तथा पदमा रामगढ़ राज्य की राजधानियों का सही क्रम है।
अन्यराजवंश
- सिंहभूमके धालभूल क्षेत्र में धाल राजाओं का शासन था।
- खड़गडीहाराज्य की स्थापना हंसराज देव ने की थी।
- हंसराजदेव भारत के रहनेवाले थे।
- मानभूमक्षेत्र का सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य पंचेत था।
- पंचेतराज्य के राजा ने कपिला गाय की पूँछ को राजचिन्ह के रूप में स्वीकार किया था।
- पलामूरियासत की राजधानी पलामू गढ़ औरंगा नदी के तट पर थी।
- कुंडेरियासत हजारीबाग जिले में अवस्थित थी।
- सोनपुरारियासत पलामू जिले में अवस्थित थी।
वैदिक कालमें झारखण्ड
- ऋग्वेदिक कालमें झारखण्डको कीकटप्रदेश केनाम सेजाना जाताथा।
- ऋग्वेद मेंझारखण्ड को‘कीकटानाम देशोंअनार्य‘ कहकरसंबोधित कियागया है।
- अथर्ववेद कालमें झारखण्डके लोगोंको ‘व्रात्य‘ कहा जाताथा ।
- वैदिक साहित्यमें प्रयोगकिया जानेवाला ‘असुर‘ शब्द संभवतःझारखण्ड कीजनजातियों केलिए प्रयुक्त हुआहै।
- ऐतरेय ब्राह्मणमें झारखण्डको पुण्ड्र/पुण्ड कहागया है।
- सुह्य देशका संबंधवर्तमान संथालपरगना क्षेत्रसे है।
- अंग एवंपुण्ड्र स्थानपर आजका झारखण्डराज्य विस्तृतहै।
महाभारत कालमें झारखण्ड
- महाभारत कालमें झारखण्डवृहद्रथवंशी जरासंघके अधिकारक्षेत्र मेंथा।
- अपने शत्रुओंको बंदीबनाकर जरासंघझारखण्ड केजंगल मेंछोड़ देताथा ।
- जरासंघ केसमय झारखण्डमगध साम्राज्य कादक्षिणी भागथा ।
- हर्यक वंशके राजाबिम्बिसार कीइच्छा झारखण्डके क्षेत्रमें बौद्धधर्म काप्रचार करनाथा ।
- नंद वंशके समयझारखण्ड मगधसाम्राज्य काअंग था।
- नंद वंशकी सेनामें हाथीझारखण्ड केजंगलों सेभेजे जातेथे |
- नंद वंशकी सेनामें जनजातीयतत्वों कासमावेश था।
झारखण्ड मेंबौद्ध एवंजैन धर्मका प्रभाव
- झारखण्ड गौतमबुद्ध केधर्म प्रचारका क्षेत्रथा ।
- धनबाद केदलसी औरबुद्धपुर मेंअभी भीअनेक बौद्धअवशेष बचेहुए हैं।
- कंसाई नदीके तटपर स्थितबौद्ध स्थलबुद्धपुर मेंबुद्धेश्वर मंदिरस्थित है।
- राँची केजोन्हा जलप्रपात, गुमलाजिले केकुटगा ग्राम, जमशेदपुर केभूला तथाधनबाद केईचागढ़ स्थानसे बुद्धकी मूर्तियाँ मिलीहै।
- झारखण्ड क्षेत्रमें समुद्रगुप्त केप्रवेश केबाद बौद्धधर्म कापराभव शुरूहुआ।
- बंगाल केपाल शासकोंके समयबौद्ध धर्मका बज्रयानसम्प्रदाय झारखण्डमें फल–फूल रहाथा।
- झारखण्ड केपारसनाथ कोजैन धर्मका मक्काकहा जाताहै |
- जैन धर्मके 24 मेंसे 20 तीर्थकरों नेपारसनाथ पर्वतजिसे सम्मेदशिखर भीकहा जाताहै, परनिर्वाण प्राप्तकिया ।
- पारसनाथ पर्वतपर मोक्षप्राप्त करनेवाले अंतिमतीर्थकर पार्श्वनाथ थे|
- जैन धर्मके तीर्थंकर पार्श्वनाथके नामपर पारसनाथपर्वत कानामकरण हुआहै।
- पारसनाथ पर्वतजैन धर्मके श्वेताम्बर वदिगम्बर संप्रदाय कापवित्र स्थलहै।
- पारसनाथ पर्वतझारखण्ड केगिरिडीह जिलेमें स्थितहै।
- गिरिडीह जिलेका मधुवनस्थल श्वेताम्बरी जैनियोंका तीर्थस्थल है।
- झारखण्ड मेंबौद्ध धर्मके साथ–साथ जैनधर्म काभी व्यापकप्रचार–प्रसारहुआ ।
- झारखण्ड मेंमानभूम जैनसभ्यता एवंसंस्कृति काकेन्द्र था।
- कंसाई औरदामोदर नदियोंकी घाटीमें जैनअवशेष अभीतक बिखरेपड़े है।
- पलामू जिलेके हनुमांडगाँव (सतबरवा) से जैनियोंके पूजास्थल मिलेहैं।
- चतरा जिलेसे बौद्धएवं जैनकी अनेकोंमूर्तियाँ प्राप्तहुई हैं।
- चतरा जिलेमें जैनियोंके नौसर्पक्षत्रोंयुक्त तीर्थंकरों कीप्रतिमा है।
- चतरा जिलेके कोल्हुआपहाड़ केपत्थर परएक पदचिन्हहै जिसेजैनी पार्श्वनाथ काचरण चिन्हमानते हैं।
- कोठेश्वरनाथ कास्तूप ईटखोरी(चतरा) मेंस्थित है।
मौर्यकाल से हर्ष काल तक झारखण्ड
- चाणक्यने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘अर्थशास्त्र‘ मेंझारखण्ड को कुकुट देश के नाम से संबोधित किया है ।
- चन्द्रगुप्तमौर्य झारखण्ड प्रदेश से अपनी सेना के लिए हाथी मंगाता था ।
- मौर्यसम्राट अशोक के 13वें शिलालेख में झारखण्ड क्षेत्र की चर्चा की गयी है।
- अशोकने शिलालेख-13 में झारखण्ड क्षेत्र की चर्चा अटावी नाम से की है।
- झारखण्डक्षेत्र में बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु अशोक ने एक धर्म अधिकारी भेजा था,जिसका नाम रक्षित था ।
- मौर्यसम्राट अशोक ने कलिंग अभिलेख संख्या-2 में लिखा है कि इस क्षेत्र की जनजातियों को मेरे धम्म का आचरण करना चाहिए ।
- कलिंगराजखारवेल झारखण्ड के रास्ते से मगध पर विजय हासिल करने में सफल हुआ।
- झारखण्डमें कनिष्क, जो कुषाण वंश का सबसे महानतम राजा था, के समय के सिक्के राँची एवं सिंहभूम से प्राप्त हुए हैं ।
- कुषाणोंका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र पर अधिकार था ।
- सिंहभूममें रोमन सम्राटों के सिक्के मिले हैं |
- चाईबासामें इण्डोसीथियन सिक्केमिले हैं|
- समुद्रगुप्तने पुण्ड्रवर्धन, जिसमेंझारखण्ड का अधिकांश भाग शामिल था, को अपने साम्राज्य में मिलाया ।
- राँचीके निकट पिठौरिया पहाड़ पर एक गुप्तकाल का कुंआ मिला है|
- गुप्तकालमें आये चीनी यात्री फाह्यान ने राँची को कुक्कुटलाड कहा है।
- समुद्रगुप्तकी सेना दक्षिण कोशल पर आक्रमण के समय झारखण्ड से होकर गुजरी थी ।
- 600 ई. के आसपास अंगराज जयनाग जिसके अधीन संथालपरगना भी था, के सेनापति शशांक ने मगध राजा गृहवर्मन को हराकर मगध राज्य पर अधिकार कर लिया ।
- बेनीसागरके शिव मंदिर का निर्माण शशांक ने कराया था ।
- हर्षके समय आये ह्वेनसांग ने इस क्षेत्र को की–लो–ना–सु–फा–ला–ना (कर्ण–सुवर्ण) कहा है|
- ह्वेनसांगके यात्रा वृतान्त में राजमहल क्षेत्र की चर्चा है।
- प्राचीनझारखण्ड में शशांक एक ऐसा राजा था जिसने यहाँ लंबे समय तक राज किया ।
- कन्नौजके राजा यशोवर्मन के दिग्विजय के समय मगध के जीवगुप्त-II को झारखण्ड में शरण लेनी पड़ी थी ।
पूर्व-मध्यकाल में झारखण्ड
- ईटखोरीनामक स्थान से पाल शासक महेन्द्र पाल के शिलालेख मिले हैं |
- ईटखोरीस्थित माँ भद्रकाली की मूर्ति का निर्माण संभवतः पाल काल में हुआ था।
- नागवंशीराजा मोहन राय तथा गजघंटराय महेन्द्र पाल के समकालीन थे ।
- पूर्वमध्यकालीन इतिहास में झारखण्ड को कलिन्द देश कहा गया है
- कविजयदेव के सांस्कृतिक परंपरा से झारखण्ड संबद्ध रहा है |
- 12वींसदी में पहली बार उड़ीसा के नरसिंह देव-II ने खुद को झारखण्ड का राजा घोषित किया ।
- राजानरसिंह देव-II के ताम्रपत्र में पहली बार झारखण्ड का उल्लेख हुआ है|
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