खेल रत्न पुरस्कार का नाम, परिवर्तित करके अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कर दिया गया|
khel ratn ka naam Parivartan Karke Major Dhyan Chand Rakha Gaya
मेजर ध्यानचंद:-
👉मेजर ध्यानचंद हॉकी का जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का जन्म: –29 august 1905 को इलाहाबाद में हुआ था| 👉वह अकेले ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने ओलंपिक हॉकी खेल में तीन स्वर्ण पदक भारत के नाम की |👉 भारत इनकी उपलब्धि के तौर पर मेजर ध्यान चंद्र की जन्म तिथि 29 august को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है | 👉हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने अपने खेल करियर में 1000 से भी ज्यादा गोल दागे थे मैदान में खेलने के लिए उतरते थे उनकी हॉकी स्टिक से बॉल चिपक जाती थी |सामने वाली टीम को समझ ही नहीं पड़ता था कि एक ही आदमी इतने गोल कैसे मार सकता है| 👉मेजर ध्यानचंद ने 1928 एम्सटर्डम ओलंपिक ,1932 लॉस एंजिलिस ओलंपिक और 1936 बर्लिन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया और तीनों ही बार भारत ने ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता था | एम्सटर्डम ओलंपिक1928 में पहली बार भारतीय टीम ने भाग लिया ,एम्सटर्डम में भारतीय टीम सभी मुकाबले जीत गई| 👉17 मई सन 1928 को आस्ट्रिआ को 6-0 से हराया इसके बाद 18 मई को बेल्जियन को 9 -0 से हराया।, 20 मई को डेनमार्क को 5 -0 ,22 मई को स्विट्जरलैंड को 6 -0 और 26 मई को होलेंड को 3 -0 फाइनल मैच हरा कर विश्व बार में हॉकी के चैम्पियन घोसित कर दिए गए | 29 मई को उन्हें पदक प्रदान किया गया एवं मैच के दौरान एक वाक़या ऐसा भी हुआ जब मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक ही तोड़कर जांचा गया | जब वो खेल के मैदान में उतरते थे तब उनकी बॉल हॉकी स्टिक से चिपकी हुई रहती थी | इस बात पर मेजर ध्यानचंद का कहना था मैंने अपने जीवन में कभी धोखा नहीं किया यह मेरी मेहनत का नतीजा और प्रैक्टिस का नतीजा है| साल 1936 में बर्लिन ओलंपिक हॉकी वर्ल्ड कप फाइनल में उस समय जर्मनी वर्सेस इंडिया के मैच को स्टेडियम में लगभग 25000 लोग देख रहे थे उस मैच में भारत ने जर्मनी 16 -1 से जमनी को रोंद डाला और जिसमें से 15 गोल अकेले मेजर ध्यानचंद ने दागे थे | दुनिया का सबसे बड़ा तानाशाह हिटलर उस दिन स्टेडियम में था| बर्लिन में मेजर ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हें डिनर के लिए बुलायाथा, तब हिटलर ने जर्मनी की फौज में बड़े पद का लालच देकर ध्यानचंद को जर्मनी की ओर से खेलने का प्रस्ताव रखा लेकिन ध्यानचंद ने अपने अंदाज में जवाब दिया साहब मिस्टर हिटलर ‘मुझे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी मेरे देश की नहीं है ये मेरी जिम्मेदारी है कि मैं अपने देश को आगे बढ़ाओ और मैं अपने ही खेलूंगा और एक दिन विश्व का सर्वश्रेस्ट खिलाड़ी बनुगा | उनका निधन 3 दिसंबर 1979 हो गया |उपलब्धिया:-
- सन् 1927 ध्यानचंद लांस नायक बना दिए गए
- सन् 1932 में लॉस एंजिल्स जाने पर नायक नियुक्त
- सन् 1937 भारतीय हॉकी दल के कप्तान थे तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया
- 2 विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ तो 1943 में लेफ्टिनेंट नियुक्त किए गए|
- भारत के स्वतंत्र होने पर 1948 में कप्तान बना दिए
- पदम भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया :- 1958