मनरेगा : nrega job card list 2022
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) का शुभारंभ आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले से 2 फरवरी, 2006 को देश के 200 चुनिंदा जिलों में किया गया था, जिसे वर्ष 2007-08 में 130 अतिरिक्त जिलों में विस्तारित किया गया। 1 अप्रैल, 2008 को इसका विस्तार जम्मू एवं कश्मीर को छोड़कर (वर्तमान में लागू) देश के सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में कर दिया गया। 2 अक्टूबर, 2009 को नरेगा का नाम परिवर्तित कर ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना‘ (मनरेगा) कर दिया गया। ध्यातव्य है कि राष्ट्रपति द्वारा नरेगा को 5 सितंबर, 2005 को स्वीकृति प्रदान की गई थी। मनरेगा रोजगार की वैधानिक गारंटी प्रदान करता है, जो अन्य योजनाओं की तुलना में इसे विशेष बना देता है।मनरेगा का लक्ष्य:-
प्रत्येक ग्रामीण परिवार के एक वयस्क सदस्य को न्यूनतम 100 दिन का अकुशल रोजगार उपलब्ध कराना।मनरेगा का उद्देश्य:-
- सवैतनिक रोजगार अवसर उपलब्ध कराना।
- प्राकृतिक संसाधनों के पुनर्निर्माण द्वारा धारणीय ग्रामीण आजीविका का निर्माण एवं परिसंपत्ति का सृजन |
- विकेंद्रीकरण, पारदर्शिता तथा जवाबदेहिता के द्वारा ग्रामीण सुशासन को सुदृढ़ करना ।
मनरेगा का प्रमुख तथ्य:-
- ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले प्रत्येक परिवार का वयस्क सदस्य जो अकुशल श्रम का इच्छुक है, स्थानीय ग्राम पंचायत में पंजीकरण करा सकता है।
- पंजीकरण के लिए परिवार एक यूनिट है।
- इस अधिनियम के तहत प्रत्येक परिवार प्रत्येक वित्त वर्ष में 100 दिन का रोजगार प्राप्त करने का पात्र है।
- रोजगार प्राप्त करने के लिए लिखित आवेदन प्राप्त होने की तारीख से 15 दिन के भीतर रोजगार प्रदान करने की गारंटी प्रभावी हो जाती है।
- योजना के तहत पंजीकृत परिवार को जॉब कार्ड जारी किया जाता है।
- यह जॉब कार्ड रोजगार की मांग करने के अभिनिर्धारण का आधार होता है। प्रत्येक जॉब कार्ड पर विशिष्ट पहचान संख्या अंकित होती है।
- मांग किए जाने की तारीख से 15 दिन के भीतर रोजगार प्रदान न किए जाने की स्थिति में राज्य (अधिनियम के अनुसार) उस लाभार्थी को बेरोजगारी भत्ते का भुगतान करेगी। योजना के अंतर्गत कार्य गांव के 5 किमी. की परिधि में ही प्रदान किया जाता है।
- 5 किमी. से अधिक दूरी पर रोजगार प्रदान किए जाने की स्थिति में अतिरिक्त परिवहन और जीवन-यापन व्यय को पूरा करने के लिए 10 प्रतिशत अधिक वेतन के भुगतान का प्रावधान है। 9 इस योजना के तहत कम-से-कम एक-तिहाई लाभार्थी महिलाएं होती हैं। भारत सरकार इसकी मजदूरी दर राज्य-वार अधिसूचित करती है और यह उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वारा यथा निर्धारित मुद्रास्फीति के अनुसार तय की जाती है|
- मजदूरी का भुगतान साप्ताहिक आधार पर (किसी स्थिति में पाक्षिक आधार से अधिक नहीं) होता है| मजदूरी का भुगतान अनिवार्य रूप से वैयक्तिक/संयुक्त बैंक या डाकघर के लाभार्थी खाते के माध्यम से किया जाता है। अधिनियम के अनुसार, कामगारों को भुगतान करने में होने वाले विलंब, यदि कोई हो, का समाधान करने का उत्तरदायित्व राज्य सरकार का है।
- किसी वित्त वर्ष में किए जाने वाले कार्यों के स्वरूप और विकल्प के संबंध में आयोजना निर्माण तथा निर्णय ग्राम सभा की खुली बैठक में निर्धारित किया जाता है। कार्यों को ब्लॉक और जिला स्तरों पर भी निर्धारित किया जा सकता है, जिन्हें प्रशासनिक अनुमोदन प्रदान करने से पहले ग्राम सभा द्वारा अनुमोदित कराना होगा तथा प्राथमिकता प्रदान करनी होगी।
- प्रत्येक ग्राम पंचायत में 6 माह में एक बार इसके सभी रिकॉर्ड और कार्यों की सामाजिक लेखा परीक्षा की जाती है। प्रत्येक जिले में लोकपाल की व्यवस्था का भी प्रावधान है, जिसे शिकायतों को प्राप्त करने, उनका सत्यापन करने और निर्णय देने का अधिदेश प्राप्त होगा।
- अधिनियम के तहत भारत सरकार अकुशल शारीरिक श्रम का शत-प्रतिशत लागत, सामग्री का 75 प्रतिशत लागत, कुशल और अर्द्धकुशल कामगारों की मजदूरी का 75 प्रतिशत लागत तथा कुल प्रशासनिक व्यय का 6 प्रतिशत लागत वहन करती है। शेष व्यय राज्य सरकारें वहन करती हैं। इसके अतिरिक्त कामगारों को लाभान्वित कराने हेतु इस अधिनियम के तहत कार्यों के निष्पादन में संविदाकारों अथवा मशीनरी के उपयोग को निषिद्ध किया गया है।
- वेतन आधारित रोजगार पर मुख्य ध्यान रखते हुए इस अधिनियम में यह अधिदेश दिया गया है कि किसी ग्राम पंचायत से किए गए कार्यों की कुल लागत में वेतन एवं सामग्री व्यय का अनुपात 60 : 40 होना चाहिए।
- अधिनियम के अंतर्गत सभी कार्यस्थलों पर शिशु गृह, पेयजल तथा शेड जैसी कार्यस्थल सुविधाओं की व्यवस्था का भी प्रावधान किया गया है|वर्ष 2021-22 के लिए मनरेगा हेतु 73 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो किसी भी अन्य अकेली योजना के आवंटन से अधिक है।
मनरेगा का प्रगति:-
9 जुलाई, 2021 तक 730462.22 करोड़ रुपये के परिव्यय से कुल 3566.29 करोड़ रोजगार दिवसों का सृजन किया जा चुका वित्तीय वर्ष 2020-21 (21 जनवरी, 2021 तक), 311.92 करोड़ मानव दिवस उत्पन्न किए गए, जो अब तक का सबसे उच्च है। कुल है। दिवसों में से, महिलाओं के लिए 52.69 प्रतिशत, अनुसूचित जाति के लिए 19.9 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए 17.8 प्रतिशत है।
मनरेगा का विश्लेषण:-
अब तक हुई समीक्षाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि मनरेगा अपने लक्ष्य में काफी हद तक सफल रहा है। मनरेगा ने ग्रामीण आधारभूत संरचना के विकास के साथ महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण तथा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को आत्मनिर्भर बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह सर्वाधिक कमजोर एवं अत्यधिक उपेक्षित लोगों तक पहुंचने में भी सक्षम रहा है। मनरेगा के माध्यम से ग्रामीण-नगरीय स्थानांतरण में भी कमी आई है। मनरेगा ने ग्रामीण गरीबों को ऋणग्रस्तता और बंधुआ मजदूरी से भी मुक्ति दिलाई है। हालांकि मनरेगा से कुछ सामाजिक आर्थिक समस्याओं के उत्पन्न होने का भी तर्क दिया जा रहा है। उदाहरणस्वरूप इससे कृषि क्षेत्र में मजदूरों की कमी आई है, जिसके कारण मजदूरी में वृद्धि हुई है। इससे कृषि उत्पादों के महंगा होने से महंगाई में वृद्धि की संभावना व्यक्त की जा रही है। इसके अतिरिक्त शहरों में स्थित कंपनियों में भी मजदूरों की संख्या में कमी आई है, जिससे उत्पादन भी दुष्प्रभावित हो रहा है। परंतु, इन सीमाओं के बावजूद इसमें कोई संदेह नहीं कि मनरेगा से अत्यधिक लाभ हुआ है तथा यह अपने समावेशी विकास के दर्शन के अनुरूप रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार एवं अन्य समस्याओं को दूर करके इसे और पारदर्शी एवं प्रभावशाली बनाया जाए।
मनरेगा के बारे में इन्हें भी जानिए:-
- अर्थशास्त्र में छिपी या प्रछन्न बेरोजगारी शब्द का प्रयोग सबसे पहले श्रीमती जोन रॉबिन्सन (Ms. Joan Robinson) ने किया था। तकनीकी शब्दावली में श्रमिकों की सीमांत उत्पादकता के शून्य होने को छिपी बेरोजगारी कहते हैं, अर्थात जब किसी काम में जितने श्रमिकों की वास्तव में आवश्यकता होती है, उससे अधिक लोग काम पर लगे हुए हों, तो इस बेरोजगारी को छिपी हुई बेरोजगारी कहा जाता है।
- भारत में छिपी हुई बेरोजगारी प्राथमिक क्षेत्र (कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों) में अधिक पाई जाती है, ऐसा भूमि एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर आबादी के अधिक दबाव के कारण होता है। तकनीकी विकास की कमी के कारण जनसंख्या का अधिकतर भाग कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों पर निर्भर करता है, जिस कारण एक ही कार्य में आवश्यकता से अधिक लोग लगे होते हैं। यही छिपी हुई बेरोजगारी का कारण बन जाता है।
- भारत सहित विकासशील देशों और अल्प विकसित देशों में पाई जाने वाली अधिकांशतः बेरोजगारी संरचनात्मक होती है। संरचनात्मक बेरोजगारी का मुख्य कारण व्यक्तियों में रोजगार के अनुरूप कौशल का न पाया जाना होता है।
- स्टैंड-अप इंडिया का उद्देश्य अनुसूचित जाति/जनजाति एवं महिला उद्यमियों की संस्थागत साख संरचना तक पहुंच को आसान बनाना है। इस योजना का शुभारंभ 5 अप्रैल, 2016 को बाबू जगजीवन राम के जन्म दिवस तथा डॉ. भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा नोएडा से किया गया।
- स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY) ग्रामीण गरीबों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए एक समन्वित कार्यक्रम के रूप में 1 अप्रैल, 1999 को शुरू की गई थी।
- 1 दिसंबर, 1997 को स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना शुरू की गई थी। जवाहर रोजगार योजना 1 अप्रैल, 1989 को शुरू की गई थी।
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तेजसिंह राजपूत